भारतीय वैज्ञानिकों के सहयोग से बनी नई मशीन, संक्रमण की गंभीरता का आसानी से पता चलेगा

भारतीय वैज्ञानिकों के सहयोग से बनी नई मशीन, संक्रमण की गंभीरता का आसानी से पता चलेगा

सेहतराग टीम

कोरोना वायरस से बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए वैज्ञानिक लगातार नए-नए शोध कर रहे हैं। कई एक्सपर्ट वैक्सीन की खोज कर रहें तो कई लोग नए उपकरण विकसित कर रहे हैं। लगातार प्रयास के बाद दो ऐसे उपकरण विकसित किए गए हैं, जिससे संक्रमण की गंभीरता का अनुमान लगाना आसान हो गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इन उपकरणों की मदद से संक्रमण से मौत के खतरे का भी पता लगाया जा सकता है।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके बनाए 'कैलकुलेटर' यह भी बता सकते हैं कि कोरोना के किस मरीज को अस्पताल में वेंटीलेटर की जरूरत और किसे मौत के खतरा ज्यादा है। इन शोधकर्ताओं में एक भारतीय मूल के भी विज्ञानी हैं।

ई-क्लीनिकल मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक, नए उपकरणों के माध्यम से डॉक्टर कोरोना संक्रमित रोगियों के खतरे को बेहतर तरीके से जान पाएंगे और आइसीयू में उपलब्ध क्षमता और संसाधनों का उपयुक्त इस्तेमाल कर पाएंगे।

मैसाच्युसेट्स जनरल हॉस्पिटल (एमजीएच) के शोधकर्ता राजीव मल्होत्रा ने बताया कि रोगी की पूर्व मेडिकल हिस्ट्री, लक्षण और भर्ती होने के समय विभिन्न तरह के जांच परिणामों के आधार पर हमने ऐसे मॉडल (ऑनलाइन कैलकुलेटर) विकसित किए हैं, जिनसे हॉस्पिटल में यांत्रिक वेंटीलेशन की जरूरत और मौत के खतरे वाले रोगियों की पहचान कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि एक अन्य अध्ययन में हमने 30 दिन और उससे पहले से भर्ती रोगियों के निष्कर्ष पर फोकस किया।

शोध के मुख्य लेखक क्रिस्टोफर निकोल्सन के मुताबिक, अध्ययन के लिए कोरोना महामारी के पहले तीन महीने में पांच अस्पतालों में पहुंचे 1,042 संक्रमित मरीजों के चिकित्सीय सूचनाओं को कंपाइल किया गया। इन सूचनाओं को ऑनलाइन कैलकुलेटर में डालकर डॉक्टर कोरोना रोगियों के भर्ती होने के समय ही यह अंदाजा लगा पाएंगे कि किसे आइसीयू में देखभाल की जरूरत होगी। इसका निष्कर्ष पहले से ज्ञात तरीकों से 80 फीसद ज्यादा सटीक जानकारी देगा कि किसे वेंटीलेटर की जरूरत होगी या रोगी के जीवन पर क्या असर हो सकता है। 

हर उम्र के लोगों के बारे में देगा सटीक जानकारी:

शोधकर्ता को इस बात से हैरानी है कि इस अध्ययन में रोगी की उम्र का कोई खास महत्व नहीं है। यह पाया गया कि युवाओं और बुजुर्गो के अस्पताल में भर्ती होने पर वेंटीलेटर की जरूरत या उनके जीवन पर खतरे का उनकी उम्र से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह पाया गया कि 25-34 वर्ष उम्र वर्ग के 59 फीसद रोगियों को 14 दिन से ज्यादा वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी, जो उम्रदराज लोगों के बराबर ही था।

आइआइटी गुवाहाटी ने भी विकसित किया था तरीका:

बता दें कि इससे पहले एक अन्य अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने वायरस और उसकी सतह पर प्रोटीन के उभार के बीच के 'बायो-इंटरफेस इंटरेक्शन' का इस्तेमाल कोविड-19 का पता लगाने के साथ-साथ उसकी रोकथाम का एक तरीका विकसित किया था। कोरोना वायरस का विषाणु सार्स सीओवी-2 इनर न्यूक्लिक एसिड (अम्ल) से बना होता है जो कांटेदार ग्लाइकोप्रोटीन वाली सतह से ढका रहता है। शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि ऐसे में नए तरीके से कोविड-19 का पता लगाया जा सकता है और उसकी रोकथाम भी की जा सकती है।

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